केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने आधार योजना को लागू करने पर पहले ही अच्छी-खासी धनराशि खर्च कर दी है और काफी देर हो जाने के कारण विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को अब रद्द नहीं किया जा सकता.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि बड़ी संख्या में नागरिक आधार के लिए पंजीकरण करा चुके हैं और विशेष पहचान कार्यक्रम से कदम पीछे खींचने का प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है.
रोहतगी ने कहा, ''ये बड़े अहम सवाल हैं. जिस तरह के सवाल उठाए गए हैं और इस देश के प्रशासन पर जो इसका प्रभाव है, वह काफी बड़ा है. इसका फैलाव काफी बड़ा है.'' उन्होंने कहा कि इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ में भेजा जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति जे चेलमेर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि वह इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजने पर कल सुनवाई करेगी.
सेंटर फॉर सिविल सोसायटी नाम के एनजीओ के वकील के के वेणुगोपाल ने अटॉर्नी जनरल की दलीलों का समर्थन किया और कहा कि इसमें निजता और निगरानी से जुड़े कानूनों का बड़ा सवाल शामिल है.
वेतन, पीएफ और विवाह तथा संपत्ति पंजीकरण सहित कई गतिविधियों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य बनाने के कुछ राज्यों के फैसलों के खिलाफ दाखिल कई याचिकाओं की सुनवाई पीठ कल से शुरू करेगी.
इससे पहले, अदालत ने कहा था कि आधार अनिवार्य नहीं होगा और जिस व्यक्ति के पास आधार नहीं है, उसे सरकारी लाभ और सेवाओं से किसी तरह वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया था कि अवैध रूप से भारत में रह रहे लोगों को आधार कार्ड जारी न किए जाएं क्योंकि इससे उनके यहां रहने को वैधता मिल जाएगी.
यह खबर समय लाईव के वेबसाइट पर पढे