आरक्षण के मुकाबले दलितों के उत्थान में मुक्त बाजार ज्यादा कारगर

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आरक्षण के मुकाबले दलितों के उत्थान में मुक्त बाजार ज्यादा कारगर

प्रेस विज्ञप्ति - तुरंत प्रकाशन के लिए - 04 फरवरी 2013

 

नई दिल्ली। दलित विचारक व चिंतक चंद्रभान प्रसाद ने कहा है कि देश के दलितों के उत्थान की प्रक्रिया में आरक्षण के मुकाबले मुक्त बाजार व्यवस्था ज्यादा कारगर है। उन्होंने कहा है कि आरक्षण की व्यवस्था महज 10 प्रतिशत लोगों का फायदा कर सकती है जबकि मुक्त बाजार व्यवस्था में 90 प्रतिशत दलितों के उत्थान की क्षमता है। बाजारवाद के फायदों को गिनाते हुए चंद्रभान ने कहा कि यह बाजारवाद की ही देन है कि सदियों से जारी दलितों और गैर दलितों के बीच के रहन-सहन, खान-पान और काम-काज का फर्क समाप्त हो गया है। वह एशिया सेंटर फॉर इन्टरप्राइज (एसीई) द्वारा आयोजित पहले अंतर्राष्ट्रीय एशिया लिबर्टी फोरम (एएलएफ) के दौरान अपने विचार प्रकट कर रहे थे। सेंटर फॉर सिविल सोसायटी (सीसीएस), एटलस इकॉनमिक रिसर्च फाऊंडेशन (एईआरएफ), फ्रेडरिक नूमैन स्टिफटुंग फर डे फ्रेहेट (एफएनएफ) व एसीई के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस दो दिवसीय समारोह में दुनिया के तीस देशों के दो सौ से अधिक प्रतिनिधि व अर्थशास्त्री शामिल थे।

दो दिवसीय एएलएफ कार्यक्रम के अंतिम दिन रविवार को इकॉनमिक रिफॉर्म्स एंड कास्ट्स इन इंडिया विषय पर बोलते हुए चंद्रभान प्रसाद ने कहा कि बाजार की विशेषता जात-पात से उपर उठकर अधिकतम लाभ प्राप्त करने की होती है। यह बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव का असर ही है कि आज सवर्ण जाति के लोग भी बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स, पांच सितारा होटलों आदि में हाऊस कीपिंग व सिक्योरिटी गार्ड का काम खुशी खुशी कर रहे हैं जो पूर्व में सिर्फ दलितों का काम माना जाता था। उन्होंने कहा कि मुक्त बाजार व उदारवाद के कारण कम से कम मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में आज जातियों के बीच खानपान, रहन सहन व पहनावे का भेद मिट चुका है।

इसके पूर्व पहले दिन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उड़ीसा के केंद्रपाड़ा से लोकसभा के सांसद बिजयंत जय पांडा ने कहा कि देश में विदेशी निवेश और विदेशी उद्योगों का विरोध करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी फोबिया के शिकार हैं। व्यापार करने के उद्देश्य से आयी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा पूरे देश में कब्जा जमा लेने के वाकए का डर अबतक लोगों के दिलो दिमाग से निकल नहीं पाया है और विदेशी निवेश का विरोध उसी डर का परिणाम है। उऩ्होंने इस डर को दूर किया जाना की आवश्यकता पर भी जोर दिया। स्टेट, मार्केट्स एंड सोसायटी विषय पर विचार प्रकट करते हुए सांसद जय पांडा ने कहा कि जबतक दिल्ली में बैठे लोग योजनाएं बनाते रहेंगे सुदूर प्रदेशों का विकास नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि उड़ीसा के खदानों से कोयला निकालकर सैंकड़ों किलोमीटर दूर दूसरे राज्य में पावर प्लांट की स्थापना की जाती है जो समय, श्रम व अन्य संसाधनों की बर्बादी ही है। राजनैतिक दल से संबंधित होने के बावजूद उन्होंने कहा कि देश में लोकतंत्र है लेकिन राजनैतिक दलों के भीतर ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अभाव है। पांडा के मुताबिक जनता में लोकप्रिय प्रतिनिधियों को ही पार्टी टिकट मिले यह जरूरी नहीं होता और इसके पीछे बहुत से छिपे कारक जिम्मेदार होते हैं। कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत थिंकटैंक सीसीएस के प्रेसिडेंट व जाने माने अर्थशास्त्री डा. पार्थ जे. शाह, एटलस के वाइस प्रेसिडेंट टॉम जी. पामर व एफएनएफ के रीजनल डाइरेक्टर सिगफ्रेड हरजॉग के वकतव्यों के साथ हुई।

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