प्रभावित होगा निवेश
पार्थ जे शाह, अध्यक्ष, सेटर फॉर सिविल सोसायटी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन रद्द किए जाने का तात्कालिक असर बैंकों, निवेश के माहौल और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। जिन कंपनियों ने बैंकों से पैसा लेकर कोल ब्लॉकों में निवेश किया था वे कंपनियां अब बैकोें का पैसा शायद नहीं चुका पाएं।
इससे बैंकों का पैसा फंस जाएगा। अर्थात एनपीए बढ़ेगा। इसकी भरपाई अंतत: सरकार को ही करनी पड़ेगी। सरकार ने निजी उद्यमियों से जो कांट्रेक्ट किए थे, वे ही रद्द हो गए हैं। इससे सरकारी कांट्रेक्ट की वैधता पर भी सवाल खड़ा होता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सरकार पर भरोसा सबसे महत्वपूर्ण होता है। सरकार में भरोसा होता है तो निवेशक आकर्षित होता है।
कोल ब्लॉक्स को लेकर चले इस घटनाक्रम से निश्चित तौर पर निवेशकों का सरकार में भरोसा कम होगा और निवेश का माहौल प्रभावित होगा।
ऎसा अनुमान है कि इन कंपनियों ने इन कोल ब्लॉकों में लगभग 2 लाख करोड़ का निवेश किया था। साथ ही अब उनको 295 रूपये प्रति टन कोल पर पेनाल्टी भी देनी होगी। इस तरह इन निजी कंपनियों को इस निर्णय के कारण भारी नुकसान हुआ है? गलती सरकार की थी, पर ऎसा लगता है कि आगे चलकर इससे सरकार को तो आर्थिक फायदा ही होगा। पेनाल्टी से जो मिलेगा वह तो है ही, कोल ब्लॉक जब फिर से आवंटित किए जाएंगे तब सरकार को उन पर अधिक कीमत भी मिलेगी।
जिन कोल ब्लॉकों को कोर्ट ने रद्द किया है उनका आवंटन अगर उचित नहीं था, गैरकानूनी था, तो यह गलती तो सरकार की है। पर सरकार में किसी को दंडित नहीं किया गया। अगर सिर्फ उन कंपनियों का कोल ब्लॉक रद्द होता जिन्होंने कोल उत्पादन अब तक बिल्कुल किया ही नहीं तब तो ठीक था, क्योंकि यह तो कॉन्ट्रेक्ट की शर्तो में ही लिखा हुआ था कि उन्हें निश्चित समय में उत्पादन शुरू करना था।
उत्पादन शुरू नहीं होने पर आवंटन रद्द करने का प्रावधान था । पर जिन्होंने कोल ब्लाकों का सही से इस्तेमाल किया है उनका आवंटन भी अगर रद्द किया जाता है तो सरकार पर यह जिम्मेदारी होनी चाहिए थी कि वह उनके नुकसान की भरपाई करे। उन्हें सरकार से जो भी कोल ब्लॉक मिला था उसका पूरा खनन करते हुए देश में कोयले की मांग को पूरा किया है तथा सरकार को राजस्व भी दिया है।
ऎसे कोल ब्लाकों की संख्या कुल संख्या लगभग 40 थी जिनमें कोयला उत्पादन हो रहा था। 4 ब्लॉकों को छोड़कर कोर्ट ने इनको भी रद्द कर दिया है।
बहरहाल, सरकार को अब इनके पुन: आवंटन की प्रक्रिया शीघ्र शुरू करनी चाहिए। देरी का असर बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है। रही बात कि अब आगे भविष्य में कोल ब्लॉक कैसे आवंटन होना चाहिए तो यह तो तय है कि अब आगे तो कोल ब्लॉकों की नीलामी ही की जाएगी।
नीलामी किस प्रकार की हो यह सरकार के लक्ष्य पर निर्भर करता है कि वह उस नीलामी से क्या हासिल करना चाहती है। अगर अधिकतम फायदा कमाना उद्देश्य है तो वह अधिक से अधिक बोली लगाने वाले को दे सकती है या नहीं तो उच्चतम बोली से नीचे की ओर आकर नीलामी कर सकती है। और भी कई तरीके हैं जिनसे नीलामी हो सकती है। इसमें मुख्य पैमाना पारदर्शिता होना चाहिए। अब तक के आवंटनों में यह नहीं था।
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