दैनिक भास्कर (धार, मध्य प्रदेश) | 21-फरवरी -2016
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के नियम देश के छोटे और गली-मोहल्लों में चलने वाले स्कूलों पर भारी पड़ रहा है। पिछले साल करीब 10 हजार स्कूल बंद हुए जबकि इस वर्ष भी इतने ही स्कूल बंद होने का अनुमान है। अगर आरटई के नियमों में ढील नहीं दी गई तो देश के करीब 50 हजार स्कूल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे। जिससे करीब दो करोड़ छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी। इसको लेकर देशभर के 24 राज्यों के स्कूल संचालक 24 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर मार्च करेंगे।
इस मामले में नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल एलायंस के संस्थापक चेयरमैन आरसी जैन कहते हैं कि दो मुख्य बिंदु हैं जिसकी वजह से सबसे अधिक समस्या हो रही है। एक,स्कूलों के लिए निर्धारित की गई जमीन के नियम की अनिवार्यता और दूसरा, छोटे स्कूलों के लिए भी मान्यता के आवश्यक होने का नियम। जैन कहते हैं कि प्राइमरी स्कूल के लिए 800 मीटर और मिडिल स्कूल के लिए 1000 मीटर जमीन की अनिवार्यता रखी गई है। देश के सभी पुराने शहरों में आजादी के पहले से चल रहे या फिर आजादी के बाद खुले स्कूल हैं। उस समय ऐसा नियम नहीं था। इसकी वजह से इन स्कूलों का बंद होना तय हो गया है।
हम चाहते हैं कि इसमें संशोधन हो। सरकार आरटीई नियम लागू होने से पहले से चल रहे स्कूलों को जमीन के इस नियम में छूट दे। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा इस संबंध में कहते हैं कि जहां तक शिक्षा के मानक का सवाल है तो हम इसमें कोई समझौता नहीं कर सकते हैं।
ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जा सकता है जिससे शिक्षा का स्तर प्रभािवत हो या उसकी गुणवत्ता को लेकर कोई आशंका हो। केंद्र सरकार इस मामले में शिक्षा का अधिकार को पूरी और प्रभावी तरीके से लागू कराना चाहती है। अगर बात जमीन के नियम आदि की है और उसको लेकर किसी को कोई बात करनी है तो संबंिधत राज्यों के साथ बात की जानी चाहिए। हमारा केवल यह कहना है कि हम शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षा के मानक-गुणवत्ता पर किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे। यह बच्चों का और उससे भी बढ़कर देश के भविष्य से संबंधित मामला है। जिस पर शायद ही कोई समझौता करे।
सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के एसोसिएट डायरेक्टर अमित चंद्रा कहते हैं कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य ने इस मामले में दिशा दिखाई है। वहां नियम लागू होने से पहले के स्कूलों को इस नियम में राहत दी गई है। उसके बाद वे देखते हैं कि क्या पुराने स्कूल का प्रदर्शन बेहतर है और इस आधार पर उन्हें छूट दी जाती है। हम चाहते हैं कि अन्य राज्य भी इस तरह के कदम बढ़ाएं। आरसी जैन कहते हैं कि पहले यह भी नियम था कि सातवीं क्लास तक की पढ़ाई के लिए किसी मान्यता की जरूरत नहीं होगी। लेकिन अब यह नियम कर दिया गया है कि सभी के लिए मान्यता लेना जरूरी होगा। इसकी वजह से ऐसे स्कूल भी बंद हो जाएंगे जो पुनर्वास कालोनियों, गांव-देहात में या कच्ची कालोनियों में खुले हैं। जहां तक पिछले साल बंद होने वाले स्कूलों की संख्या है तो यह करीब ़़10 हजार के लगभग होगी और इस साल भी करीब इतने ही स्कूल बंद होने वाले हैं। वास्तविक संख्या कई अधिक होगी। लेकिन ये बजट स्कूल क्योंकि सरकार के खातों में नहीं हैं और इनका कोई केंद्रीयकृत डाटा नहीं है ऐसे में एकदम सही संख्या देना संभव नहीं है। इनके बंद होने से लगभग 2 करोड़ छात्र प्रभािवत होंगे। वे कहते हैं कि इन इलाकों में सरकार ने जब कालोनी बसाई थी उस समय पब्लिक स्कूल का कंसेप्ट नहीं था। वहीं पुनर्वास कालोनी में सरकार ने लोगों को मात्र 25 गज के प्लॉट दिए।
कुछ लोगों ने 4-5 ऐसे प्लॉटों को जोड़कर छोटे स्कूल बना दिए। अब वे भी बंद हो जाएंगे। अमित चंद्रा कहते हैं कि हम इन मांगों को लेकर 24 फरवरी को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उम्मीद है कि सरकार इस पर कुछ ध्यान देगी। वहीं आरटीई की समीक्षा को लेकर गठित की गई राज्य के शिक्षा मंत्रियों की कमेटी की अध्यक्ष रहीं और वर्तमान में कांग्रेस विधायक गीता भुक्कल ने भास्कर से कहा कि आरटीई के तहत स्कूलों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है। इसके साथ ही स्कूल में आग रोकने का सिस्टम, सीढ़ी, बैठने की जगह, रूम, बच्चों के खेलने की जगह, जैसे नियम अनिवार्य किए गए हैं। स्कूलों को राज्य सरकारों की ओर से कई बार नोटिस दिए गए लेकिन अगर नियम के अनुसार स्कूल नहीं चल रहे हैं तो उन्हें बंद होना ही होगा। आरटीई के प्रावधान के मुताबिक निजी स्कूलों को 25 फीसदी एडमीशन देना है इसके लिए सरकार उन स्कूलों को पूरा भुगतान करती है ऐसे में स्कूलों को नियम तो लागू करने ही होंगे।
ऑल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और अभिभावको के हितों को लेकर अदालत में कई मामले दायर कर चुके एडवोकेट अशोक अग्रवाल हालांकि स्कूल एलाएंज से अलग राय रखते हैं। उनका कहना है कि शिक्षा के अधिकार के तहत ऐसे सभी स्कूल अवैध-गैर कानूनी हैं। इन्हें बंद होना ही चाहिए या फिर वे मान्यता लेकर कार्य करें। अग्रवाल कहते हैं कि ये स्कूल सरकार के खातों में कहीं नहीं हैं। ऐसे में इन स्कूलों में बच्चों के शिक्षा के मानक, उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा का जिम्मेदार कौन है। किसी अप्रिय घटना में जवाबदेही सरकार की बनती है। उस समय वह क्या जवाब देगी। अगर स्कूल चलाना है तो कम से कम संसद से पास कानून का अनुपालन तो होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा के अधिकार को लेकर सख्त कदम उठाए। यही नहीं, जिन स्कूलों को मान्यता मिल भी चुकी है, उनकी भी जांच नियमित हो।
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