राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : निजी स्कूलों की दाखिला प्रक्रिया से लेकर वहां ली जाने वाली फीस पर सूबे का सियासी पारा चढ़ सकता है। दिल्ली सरकार ने जहां इन दोनों मुद्दों पर निजी स्कूलों पर नकेल कसने की कवायद शुरू कर दी है, वहीं स्कूल प्रबंधक भी सरकार के ऐसे किसी भी कदम से निपटने के लिए लामबंद होना शुरू हो गए हैं। स्कूल प्रबंधक सरकार के किसी भी अंकुश के खिलाफ जहां सड़क पर उतर सकते हैं, वहीं इस मामले में वह न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।
दरअसल, दिल्ली सरकार दिल्ली एजुकेशन एक्ट 1973 में संशोधन करना चाहती है। इसके लिए उसने लोगों से सुझाव मांगे हैं। इसके माध्यम से सरकार दिल्ली में चल रहे निजी स्कूलों में ली जाने वाली फीस और दाखिला प्रक्रिया के संबंध में नीति निर्धारित करना चाहती है। नए कानून का पालन न करने की सूरत में स्कूल प्रबंधकों पर सख्त कार्रवाई करने की भी तैयारी है। लेकिन स्कूल संगठनों में सरकार की इस कवायद को लेकर खासा रोष है। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैंनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आरसी जैन का कहना है कि दिल्ली में नगर निगम व दिल्ली सरकार से मान्यता प्राप्त छोटे-बडे़ करीब दो हजार निजी स्कूल हैं। इनकी स्वायतत्ता पर हमला कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि सरकार ने ज्यादती की कोशिश की तो न सिर्फ स्कूल प्रबंधक सड़कों पर उतरेंगे बल्कि फिर से न्यायालय के माध्यम से राहत का मार्ग प्रशस्त करेंगे। वहीं, देशभर के निजी स्कूलों के प्रमुख संगठन नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल एलांइस (नीसा) के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर अमित चंद्र ने कहा कि दिल्ली सरकार की ओर से जारी प्रयास सरासर अनुचित है। स्कूलों की दाखिला व फीस निर्धारण प्रक्रिया में सरकार का हस्तक्षेप ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों में न्यायालय ने भी माना है कि समस्या अच्छे स्कूलों का अभाव है न कि गैर सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की मनमानी। वहीं सरकार के इस कदम का ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन ने स्वागत किया है। एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल का कहना है कि सरकार की ये कोशिश अभिभावकों के लिए राहत का मार्ग प्रशस्त करेगी।
इस लेख को जागरण वेबसाइट पर पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें या jpg प्रारूप देखने के लिये यहाँ क्लिक करें।