ए बी पी न्यूज़ | 25 जनवरी 2018
अग्रणी थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी (सीसीएस) व उदारवादी वेबपोर्टल आजादी.मी द्वारा फ्रेंच अर्थशास्त्री, पत्रकार व लेखक फ्रेडरिक बास्तियात लिखित पुस्तक ‘द लॉ’ के हिंदी संस्करण का विमोचन किया गया. 1850 में पहली बार प्रकाशित इस पुस्तक की मूल भाषा फ्रेंच है और हिंदी से पहले इसे अंग्रेजी और मलयालम सहित अन्य भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है.
पुस्तक का अनुवाद अविनाश चंद्र ने किया है. शनिवार को कॉंस्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित पुस्तक विमोचन के दौरान ‘समाज, कानून और मीडिया’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन भी किया गया. परिचर्चा के दौरान राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय संपादक रत्नेश मिश्रा, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ व व्यंग्यकार डा. आलोक पुराणिक, लोकसभा टीवी के वरिष्ठ एंकर अनुराग पुनेठा, स्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाऊंडेशन के फेलो व नेशनलिस्ट ऑनलाइन के संपादक शिवानंद द्विवेदी और उदारवादी वेबपोर्टल आजादी.मी के संपादक अविनाश चंद्र ने विचार व्यक्त किये.
इस दौरान विचार व्यक्त करते हुए रत्नेश मिश्रा ने कहा कि अधिक कानून होना ही समाज के प्रत्येक वर्ग को सुरक्षा देने की गारंटी नहीं है. उन्होंने कहा कि कानून बनाते समय जनता की निजता, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा के मुद्दे सर्वोपरी होने चाहिए.
डा. आलोक पुराणिक ने कहा कि सरकार के कार्यों की सबसे अच्छी विवेचना बाजार करती है. आने वाला कानून समाज पर कैसा प्रभाव डालेगा वो बाजार अपने हाव-भाव से पहले ही बता देता है. शेयर बाजार में उछाल और गिरावट यह बताने के लिए काफी होते हैं कि सरकार की अमुक योजना को समाज का बड़ा वर्ग किस तरीके से देखता है.
अनुराग पुनेठा ने सरकार द्वारा पुराने और गैर जरूरी कानूनों के समापन कार्य को सकारात्मक पहल बताते हुए सरकारी योजनाओं में डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम की तारीफ की. उन्होंने कहा कि डीबीटी के माध्यम से योजनाओं में खर्च होने वाली राशि के दुरुपयोग की संभावना न्यूनतम हो जाती है.
शिवानंद द्विवेदी ने समाजवादी व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहा कि यह मॉडल पूरी दुनिया में फेल रहा है जबकि खुली अर्थव्यवस्था ने विकास के नए आयाम तय किए हैं. अविनाश चंद्र ने शिक्षा व्यवस्था का उदाहरण देते हुए कहा कि सबको शिक्षा देने के लिए बने आरटीई कानून ने समस्या को कम करने की बजाए बढ़ाया ही है फिर भी सरकारें एक के बाद एक कानून लागू कर मामले को पेंचीदा बना रहीं हैं.
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